अंत मै में अपनी अर्धांग्नी -सहचरी -धर्मपत्नी श्रीमती निर्दोष रानी और अपने बेटे योगेश का आभारी हूँ जिन्होंने मुझे संस्मरण लिखने हेतु प्रौत्साहित किया तथा श्रवण कुमार समान मेरे सपुत्र महेश ,हिमाली ,प्रिया एवं प्रौदुओगिकी इन्जिनिर जतिन ने यात्रा संस्मरण की बिखरी हुई पदुल्पियो को कम्पुटर पर व्यवस्थित किया महेश को कई बार उन्हें प्रकाशन हेतु तेयार करनेके लिए टाइपिस्टके पास जाना पड़ा सभी साधू वाद के पात्र हे और मै उन सभी सहयोगी आत्माओं का भी कृतग्य हूँ ,जिनकी मदद से येपुस्तक आपके हाथो मै पहुच सकी हे मेरी इस यात्रा के संस्मरण पड़ कर यदि आप उन मानवीय सद्गुणों को धारण करने का पर्यास करेगे ,तबवह ईश्वरीय गुन न सिर्फ़ आप को बल्कि आपके सम्पर्क मै आने वाले को भी लाभ प्रदान करेगे
आपकअ -ॐ - प्रकाश खुराना
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Thursday, February 12, 2009
Sunday, February 8, 2009
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