Monday, September 1, 2008

अमेरिका में कृष्ण जन्मौत्सव---

उत्तर -पूर्वी अमेरिका ,मेसचुट्स की राजधानी बोस्टन में पहले तो हम ने यहाँ का साइंस सेंटर देखा बहुत विशाल टिकिट पर कतार थी फ़िर प्रवेश के भी चार गेट थे !उसके अंदर चार चार फ्लोर के दो विंग थे !हर फिल्ड की वैज्ञानिक जाकारी से हम बड़े अभिभूत हुए इसके बाद बेक बे एरिया पहुचे !कामनवेल्थ रोड नयनाभिराम भवनों के मध्य इस्कान टेम्पल के प्रणेता श्री पूज्य पादस्वामी के अनुयाई ओं ने यहाँ एक छोटा सा किंतु भव्य शोभा पूर्ण श्री कृष्ण मन्दिर बनाया हुआ हे !आज जन्म अष्टमी का दिन था आस पास की पार्किंग में स्थान नही मिला !प्रशांत और तरुण के साथ तीन सो कदम दूर गाड़ी पार्क कर पद यात्रा करते मन्दिर के समुख पहुचे !चरण पादूकाएस्टेंड पर रख दींस्वागत कक्ष में प्रविष्ट हुए !चार पॉँचसज्जन भारतीय वेश भूषा में मिले ,जिनसे भी हमारी आँख मिलती उधर से मुखरित होता जे श्री कृष्ण ! वहीसे हम हालकमरे में पहुच गए !जहा राधा कृष्ण की मुर्तिया विराजमान थीं !जिन पर अति सुंदर श्रृंगार किया गया था !एक तरफ भगवन के लिए फूलो से सुसजित झुला बना था !चमकते हुए फर्श पर ध्रुपद और ढोलक तथा हारमोनियम वादकों से मिलकर सभी भक्त कीर्तन कर रहे थे !हमने भी प्रभु जी के दर्शन किए ! आसन लिया और हरे किशना ,हरे रामा ,कृष्ण कृष्णा हरे हरे की धुन के साथ स्वर मिलाने लगे !संगीत की स्वर लहरिओं में सभी मस्त थे !दुनिया दारी सेदूर आत्म आनंद में थे !जब वादकों ने विश्राम के लिए संगीत को विराम दिया ,तभी हमने घड़ी पर देखा !हमे एक घंटा बीत चुका था !अब आसन छोड़ने का मन नही था !हमने बेठे बेठे भक्त मडली अपने चारों तरफ निहारा !लगभग सो सवा सो भक्त होंगे !जिसमे दस अमरीकन परिवार भी थे जिन्होंने साड़ी और कुरता धोती पहन रखी थी !उनके बच्चे भी इस परिवेश में शोभा ऐ मान लग रहे थे !थोडी देर बाद मूर्तियों के आगे पर्दे लगा दिए गए और फ़िर दो कलाकारों द्वारा ओडिसी न्रत्य किए जाने की घोषणा हुई ! इस छोटे से मन्दिर में न्रत्यो की इतनी अच्छी प्रस्तुति हो सकती हे !हमे अनुमान नही था !न्रत्य विद्यालय की कन्या ने सरस्वती वंदना की !सधी हुई वेश भूषा पर श्रंगार भी अनूठा था ! सर पर मोर मुकुट ,कानो में हीरे जडित कुंडल कवच !गले में महारानी गुलुबन्द और हार ! यह सारे आभुष्ण उस मुख की दीप्ती को सूर्य प्रकाश की किरणों की तरह चोगुना प्रदीप्त कर रहे थे !न्रत्य का आरम्भ बांसुरी की सुरीली तान से हुआ , ! जो कृष्ण का अभ्यस्त वाद्य हुआ करता था !नायका की ऊंगलिया और उनका एक एक पोर ,हाथ और कलाई यां ,आँखे ,पलके !शरीर के सभी अंग ,माँ सरस्वती के प्रति अपनी श्रधा अर्पित कर रहे थे!बांसुरी को haarmonym भी साथ देने लगा !कुछ देर बाद ttable ने भी संगत की तो न्र्त्यागना के पैर भी thirak रहे थे ,पूरी मुद्राऐ संगीत के सुरों में लए होती जा रही थी !हमने ओडिसी न्रत्य को कभी इतने गोर से नही देखा था !किंतु आज तो मन मग्न हो धूप के धुए की maanind गगन में उड़ रहा था !दूसरी प्रस्तुति अभिनय की थी जो एकल न्रत्य में पांडवो को जुआ खेलते ,हार जाना फ़िर दुशासन का द्रोपदी का चिर हरण !अंत में श्री कृष्ण द्वारा द्रोपदी की साड़ी को आनंत लम्बी कर लाज बचना !पूरी एतिहासिक कहानी भाव भंगिमा के साथ प्रस्तुत की गई जिसे सभी भक्तो व दर्शको द्वारा सराहा गया इस प्रकार विदेश में भी हमने अपने इष्ट की पूजा अर्चना कर आनंद को प्राप्त किया !जे श्री कृष्ण !

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