Sunday, November 30, 2008
नोबल पुरूस्कार विजेता डाक्टर हरगोविंद खुराना
Wednesday, November 26, 2008
अमेरिका में फ्री सेक्स का सामयिक दर्शन {फिलासफी }
मेरे पिताजी कहते थे "कभी भी दो अविवाहित व्यस्क लड़का एवं लड़की को एकांत में शयन नही करना चाहिए " लेकिन अमेरिका में शीत जलवायु अनुसार पारस्परिक सहज योंन संभंध बना लेने को कोई ग़लत नजरो से नही देखता वहा इस दिशा में प्रयोग एवं परिक्षण हो रहे हे !
एक दिन बोस्टन की ओल्ड बुक शाप में संन १९९०-९४ ke मध्य छपी पुरानी पत्रिकाओं के पन्ने पलट रहा था मेने देखा तब तक प्रिंट मिडिया तथा मोबाईल में क्रांति आ चुकी थी रंगीन योंन् पत्रिकाओं में दहकते नव योवनाओ के नग्न चित्र देख आँखे फटी रह गई !इतना ही नही चित्रों के तले सम्पर्क हेतु उनके नाम पते और मोबाईल नम्बर भी अंकित थे !वे नारद ऋषको हारने चली मेनका रम्भा और उर्वशी को भी मात दे रही थी
अब तक दुश्परिनामो को झेलने वालो में आत्म सयम एवं स्वस्थ रक्षा की सुगबुगाहट होने लगी हे
मासिक पत्रिकाओ एव इंटरनेट पर हवस भड़काते चित्रों ने खरीदार बहुत पैदा कर दिए हे लेकिन वे अब नोचने भी लगे हे !कुछ वर्ष तक यह कारोबारn खूब फला .;करोडो डालर का व्यापार हर साल होता रहा
लेकिन परिवर्तन प्रकृति का नियम हे !जो योंन सम्बन्ध पहले शरीर की जरूरत लगते थे अब अभिशाप लगने लगे हे अभी अभी एक सेक्सी पार्टी का गठन हुआ हे जो सेक्सी कारोबार ;पॉर्न वेबसाइड और यों न उछाराल्खता को बंद करवाना चाहती हे
Monday, November 24, 2008
अमेरिका भारत का पाताल लोक या स्वर्ग हे ?
भारत में दिन के समय अमेरिका खंड पाताल कहलाता हे / जब भारतवासी रात्रि शयन कर रहे होते हे तबउस स्वर्ग देश की परियां अपने देनिक कर्त्वय कर रही होती हे /
जहा सत्य '"स्वच्छता :इमानदारी अनुशासन देशभक्ति प्रेम और सबका आदर हो वो स्वर्ग से कमतर नही हो सकता
;स्वर्ग-नर्क की आलंकारिक मान्यताए पोरानिक काल की काल्पनिक ग्ल्प्कथाए भर हें वस्तुत स्वर्ग आत्म संतोष को कहते हे स्थाई आनन्द भावनाओं का ही होता हे यदि व्यक्ति का द्रष्टिकोण परिष्कृत और क्रिया कलाप आदर्शवादी मान्यताओं के अनुरूओ हो तो वह वस्तुत स्वर्ग मै ही जी रहा हे नर्क भी कोई लोक नही हे कुसंस्कारी ,दुर्गुनी मनुष्य अपने ओछे चिंतन की आग मै स्वं ही हर घड़ी जलते रहते हे चिंता भय क्रोध इर्षा द्वेष ,शोषण ,प्रतिशोध की परवर्ती हर घड़ी विख्युब्ध बनाए रहती हे ये नर्क की अनुभुतिया हे
----परम पूज्य गुरदेव आचार्य श्रीराम शर्मा जी ---
Thursday, November 13, 2008
बुधवार ५ नवम्बर की घटना
आज का सूरज अपनी किरणों से संसार को नईऊर्जा दे रहा था !अमेरिका के २३२ वर्षो के इतिहास में पहली बार कोई अश्वेत नेता बराक ओबामा के रूप में राष्ट्रपति चुना गया !आज मार्टिन लूथर किंग और महात्मा गाँधी की आत्माए प्रसन्न थी किओकी वे सदा जाती-धर्म रंग भेद से ऊपर उठ कर सद्गुणों और आदर्शो पर चलने की ही वकालत करते थे !वे कहते थे इस तरह की धरती पर ही साचा लोक तंत्र खड़ा रह सकता हे !
शिकागो जहा कभी स्वामी विवेकानंद जी का उदबोधनहुआ था आज ४७ वर्षीय बराक ओबामा ने राष्ट्रपति चुने जाने पर पहला भाषण दिया !उनके हिरदय से प्रस्फुटित हो रहे उदगार , राजनीती के छात्रो एवं श्रोताओं को कुछ नया एवं ठोस करने को प्रेरित कर रहे थे
उन्होंने अपने ओजस्वी भाषण मै कहा जिस तरह आपने जाती नस्ल ऊच नीच का भेद भुला कर मुझे जिताया हे अब उसी भावना के साथ अमेरिका को भी ऊचा ले जाना हे अपने नारे को दोहराते हुए कहा ;अमेरिका मै सब कुछ संभव हे आगे कहा मुझे ऊमीद आस पास के पथ्थरो और मारबलो से नही बल्कि उनके बीच की खाली जगह भरने वालो से हे
Tuesday, November 4, 2008
चर्च में सत्संग प्रार्थना का हिन्दी में सार
शान्ति का वाद्य बना तू मुझे...
प्रभु शान्ति का वाद्य बना तू मुझे।
हो तरिस्कार जहा, वहा करू मै नेह...
हो हमला तो ,करू मैं क्षमा ,
जहा हो भेद, वहा समव्यव्हार्र करू
शान्ति का वाद्य बना तू मुझे...
प्रभु शान्ति का वाद्य बना तू मुझे॥
घोर निराशा में भी ,करू मै आस ....
अन्ध्यारे में बनू मैं प्रकाश ॥
शान्ति का वाद्य बनादो मुझे....
प्रभू शान्ति का वाद्य बना तू मुझे॥
बराक ओबामा--
मंच से उतरने पर उन्होंने हम जैसे बोहोत से नागरिको से हाथ मिला कर धन्यवाद दिया और फिर शुभकामनाओ का आदान प्रदान करते करते हमारे बीच से विदा हो गए ।
एक आदर्श इन्सान (वारेन बुफेट )
अमेरिका में श्री लक्ष्मी की कृपा तो सदा से रही है। यहाँ के एक सज्जन पुरूष जिन्हें अमेरिका का सबसे आमिर व्यक्ति भी कह सकते है ,वह है श्री वारेन बुफेट ,उनसे मिलने का सोभाग्य नही मिला .किंतु वह अभी भी अपनी अच्चियों के कारन मेरे दिल में रमन करते है । जेट एअरलाइन और बर्कशायर हेथ्वे तथा अन्य कई कम्पनियों के मालिक होकर भी वे अपनी कार स्वयं चलते है .वे ५ कमरों से सादे माकन में निवास करते है ,जो मित्वाये होने का उदहारण है । अपने कार्यो के लिए हवाई जहाज़ की अपेक्षा अपनी कार की ही अथिकतम उपयोग करते है । दान देने और परोपकार में भी इनका कोई सानी नही है .वह दुनिया की भलाई चाहने वाले प्रथम धनवान कहे जा सकते है । अपने संस्थानों के प्रबंधक मंडलों से वर्ष में केवल एक बार ही मिलकर आत्मीय सम्भंद बनाये रखते है .अरबो डॉलर के स्वामी के घर को आज भी एक गाँधी आश्रम की उपमा दे जा सकती है ।
ओशो अनुयाई
यहाँ मुझे अपने सहपाठी - लंगोटिया मित्र नारायण दस की याद आती रही ,जो कई वर्षो तक भगवन रजनीश जी का खासमखास बनकर अमेरिका में ओशो कम्यून (आश्रम ) की प्रबंध व्यस्था करता रहा .वह कई वर्ष ओशो आश्रम पूना का ट्रस्टी भी रहा । आचर्य रजनीश ने उसे स्वामी चैतन्य कीर्ति नाम देकर ओशो टाईम्स पत्रिका का मुख्या संपादक बना दिया था। उसके छपे मार्मिक लेख भी मैं पड़ता रहा ।
मुझे याद आते है वो दिन ,आठवी नवमी कक्षा की जब गर्मी की छुय्तियाँ होती थी, सोना उगलती धरती पर गेहू की तैयार फसल की कटाई के समय ,हमे भी श्रम करने का उत्हासा जगता था .पडी के खर्चो की खातिर मुशद्दी के खेत में ,हम दोनों फसल कटाई करते थे,वह पानीपत की स्मृतिया अमेरिका आकर फिर तजा हो गई । लेकीन १९९८ के बाद उस मित्र का अटपटा नही मिला कुछ खो गया सा लगता है ।