Tuesday, November 4, 2008

बराक ओबामा--

बोस्टन मेट्रो नगर का क्विंसी सिटी हॉल फूलो की सुगंध से महक रहा था !अज यहाँ अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बराक ओबामा जी का नागरिक सम्मान होने वाला था। ४ अगस्त १९६१ को होनोलूलू (america) में जन्मे ,इलिनाय प्रान्त (शिकागो) के डेमोक्रेट नेता एवम सिनेट के सदस्य श्री ओबामा अपनी कार से उतर कर जैसे ही सभा में पहुचे ,उपस्थित जन समुदाय प्रसन्न हो उठा ,उन खिले चेहरों पर अभ की चमक मुझे भी झंकृत कर गयी। स्वागत सत्कार और अभिनन्दन के पश्चात उन्होंने अपने संशिप्त उद्बोधन में समरसता की बात की । निर्भैयता और विकास बदने के आश्वासन दिए .उन्होंनेसशक्त औरतर्क पूर्ण लहजे मै कहा, मैं ऐसी खर्चीली योजनाओ को बंद कर दूंगा जिनकी अमेरिका को जरुरत नही है उन्होंने बताया की बुश प्रशासन ने कई गलतिया की हे मै उन्हें दोहराना नही चाहता उन अँधेरी गलियो से निकाल कर मै अमेरिका को नया खियतिज देना चाहता हूँ । अंत में उन्होंने सीनियर सिटिज़न की सुविधाएँ बडाने के बारे अपने उदगार प्रस्तुत किए। ओबामा के मुखमंडल पर सद्भाव की झलक आलोकित हो रही थी।
मंच से उतरने पर उन्होंने हम जैसे बोहोत से नागरिको से हाथ मिला कर धन्यवाद दिया और फिर शुभकामनाओ का आदान प्रदान करते करते हमारे बीच से विदा हो गए ।
एक आदर्श इन्सान (वारेन बुफेट )
अमेरिका में श्री लक्ष्मी की कृपा तो सदा से रही है। यहाँ के एक सज्जन पुरूष जिन्हें अमेरिका का सबसे आमिर व्यक्ति भी कह सकते है ,वह है श्री वारेन बुफेट ,उनसे मिलने का सोभाग्य नही मिला .किंतु वह अभी भी अपनी अच्चियों के कारन मेरे दिल में रमन करते है । जेट एअरलाइन और बर्कशायर हेथ्वे तथा अन्य कई कम्पनियों के मालिक होकर भी वे अपनी कार स्वयं चलते है .वे ५ कमरों से सादे माकन में निवास करते है ,जो मित्वाये होने का उदहारण है । अपने कार्यो के लिए हवाई जहाज़ की अपेक्षा अपनी कार की ही अथिकतम उपयोग करते है । दान देने और परोपकार में भी इनका कोई सानी नही है .वह दुनिया की भलाई चाहने वाले प्रथम धनवान कहे जा सकते है । अपने संस्थानों के प्रबंधक मंडलों से वर्ष में केवल एक बार ही मिलकर आत्मीय सम्भंद बनाये रखते है .अरबो डॉलर के स्वामी के घर को आज भी एक गाँधी आश्रम की उपमा दे जा सकती है ।


ओशो अनुयाई
यहाँ मुझे अपने सहपाठी - लंगोटिया मित्र नारायण दस की याद आती रही ,जो कई वर्षो तक भगवन रजनीश जी का खासमखास बनकर अमेरिका में ओशो कम्यून (आश्रम ) की प्रबंध व्यस्था करता रहा .वह कई वर्ष ओशो आश्रम पूना का ट्रस्टी भी रहा । आचर्य रजनीश ने उसे स्वामी चैतन्य कीर्ति नाम देकर ओशो टाईम्स पत्रिका का मुख्या संपादक बना दिया था। उसके छपे मार्मिक लेख भी मैं पड़ता रहा ।
मुझे याद आते है वो दिन ,आठवी नवमी कक्षा की जब गर्मी की छुय्तियाँ होती थी, सोना उगलती धरती पर गेहू की तैयार फसल की कटाई के समय ,हमे भी श्रम करने का उत्हासा जगता था .पडी के खर्चो की खातिर मुशद्दी के खेत में ,हम दोनों फसल कटाई करते थे,वह पानीपत की स्मृतिया अमेरिका आकर फिर तजा हो गई । लेकीन १९९८ के बाद उस मित्र का अटपटा नही मिला कुछ खो गया सा लगता है ।

No comments: