Wednesday, August 13, 2008

शिकागो का गायत्री मन्दिर [ गा .श .पीठ ]

लगभग १२ वर्ष पहले चिकागो में अश्वमेध यज्ञ हुआ था. इनका ऑफिस डेस्प्लेंन शहर
में बना था. अभी न्यू जेर्सी गायत्री मिशन की मदत से इतास्का में १७००००० डॉलर की मदत से १ चर्च ख़रीदा गया था और उसमे गायत्री शक्तिपीठ का निर्माण शुरू कर दिया गया है ...यहाँ से फ़िर भारतीय संस्कृति के बारे जानने का ,अमेरिका वासियो के लिए एक दरवाजा खुल जाएगा !फ़िर सभी लोग देव संस्कृति पड़ने के लिए नालंदा - तक्षिला विश्व -व्व्दियालय की तरह देव संस्कृति विश्व विद्यालय -शांतिकुंज -हारीद्वार -उतराखंड -भारत में जा सकेंगे उदार वादियो का नगर ,इलिओनोइस की राज धनि शिकागो ,भारत वासियो की द्रष्टि में और भी महत्व पूर्ण हे !लगभग सो साल पहले यहाँ एक धर्म संसद बुलाई गई थी उसमे भारत विद्वान युवक आए ,जिन्हें बाद में स्वामी विवेकानंद के नम से जन गया उन्होंने जो प्रवचन दिया वह सार्वजनीन तो था ही ,लेकिन उनके दो शब्दों ने पूरे श्रोता समुदाय को मन्त्र मुग्ध कर दिया था !अगले दिन उनके कथन को अखबारों ने मुख प्रष्ट पर सम्मान से छापा था !धर्म संसद का गरिमा पूर्ण मंच धर्म आचार्यो और वक्ताओ से महक रहा था !यहाँ के चलन मुताबिक मंच पर जो भी वक्ता आते ,श्रोताओ को संबोधन में कहते लेडिज एंड जेंटल में न -लेकिन स्वामी विवेकानंद अमेरिकी इतिहास में पहले इसे धर्म आचार्य थे जिन्होंने श्रोताओ को बडे आत्मीय भावः से संबोधित किया ;"माई सिस्टर एंड ब्रदर्स : इतना कहते ही पूरी सभा तालियो से गूँज उठी थी वह बोल अमेरिकी ह्रदयों में भारत के प्रति प्यार के बीजारोपण के साथ साथ उन्हें अंकुरित भी कर गए थे ! एक बार गुरदेव आचार्य श्रीराम शर्मा जी ने प्रवचन करते बताया था मैअपने शरीर को एक लेबोरेट्री के तरीके से बना कर जिन्दगी भर उसमे प्रीख्शन करता रहा हू ! जिसमे जबान की नोक से उचार्ण किए गयशब्द भी शामिल हे ;हाथ से माला घुमाया जन भी शामिल हे फूल चावल चदानाकर्म -कांड हे मै मानता हू सिर्फ़ कर्म -कांड लाश हे ! आप इसकी निंदा करते हे तो बेटा मै भी इसकी बहुतनिंदा करता हू ! हम तो मजाक उड़ाकर न जाने किया किया कहते हे ! मै कहता हू कर्म कांड के साथ विचारो का सुधारहोना बहुत जरुरी हे भगवन सबी या मूर्तियाँ सब ने अपनी कल्पना से बनाईहे! भगवान की कोई मूरत नही बन सकती ! असली भगवान एक चेतना हे जो सारे विश्व मै वियापतहे ! उसकी एक छोटी सी चिंगारी हमारे और आपके भीतर बेठी हुई हे जिसको हम कहते हे ब्रह्म ! ब्रह्म विराटऔर जीव लघु हे । जीव और भगवान जब मिलते टीबी क्याहोता हे जेसे बिजली के दो तारजब आपस मेमिलते हें तो क्या बात होती हे ! एक स्पार्क निकलता हेऔर करंट निकलता हे ! हम मे क्या निकलते हे आदर्श और सिधान्त ! जब भी भगवान मिलेगा मनुष के भीतर ही मिलेगा श्रधा से भगवान आतें हे ! श्रधा का अर्थ हे श्रेष्ठ ता और आदर्शों से प्यार गुरु गोबिंद सिंग जा इब्राहीम के तरीके से हमे नुक्सान उठाना पड़ता हो तो उठाना पड़े ; लेकिन हम सिद्दांतों पर जिन्दा रहेगे ! श्रद्दा मे बड़ी शक्ति हे ! महापुरुषों से लेकर ऋषियो तक और जहा तक भगवान् के भक्त हुए हे वहा तक हरेक के भीतर हम पाते हे की अगर वे सफल हुए तो ;और अगर सफल नही हुए तो ; एक ही वजह से हुए हे की उनके अंदर श्रधा का अंश कितना रहा ! कर्म -कांड रहे ; पूजा रही हे उपासना रही हे भजन करने वाले रहे हे जप करने वाले रहे हे ; श्रद्धा के आभाव की वजह से जीवन मे श्रेष्ट ता का समावेश न कर सके और गई गुजरी अवस्था मे पडे रहे ; जप करने वाले जप करे । भक्ति होती रही , भजन होते रहे ,पर नीचता और निकम्मापन जहा का तहां बना रहा ! निकृष्ट ता ने पैर नही हटाए और भक्ति ने चमत्कार नही दिखाए ! भक्ति आयेगी तो हमारा निक्क्मापन चला जाएगा ! निक्मापन रहेगा तो भक्ति नही आयेगी !उपासना -साधना का प्राण हे श्रद्दा !शान्ति कुञ्ज से पधारे श्री पंड्या ने कहा आपको यू -एस - ऐ -का अर्थ मालूम हो !यू -उपासना ,एस -साधना ,ऐ -आराधना ,इस धरती के इन अक्षरों पर अम्ल करो !आपको पता हो एनी बेसेंट यहाँ की थी जिसने भारत की इस संस्कृति को आत्मसात कर लिया ,इशु ने हिमालय के सिद्ध आत्माओं से ज्ञान प्राप्त किया !मदर टेरेसा को भी भारत में ही सेवा कर आनंद की प्राप्ति हुई थी!भारत की भूलती जा रही उस संस्कृति पुन्न स्थापित करने हेतु नालंदा ,तक्षिला के समान देव संस्क्रती विश्व विदियाली की शाखा स्थापित की जाएगी जिसमे योग साधना परिवार प्रबन्धन ,मन्दिर प्रबंधन और साऊथ इंडियन कल्चर भी पदाया जाएगा

No comments: